Friday, September 10, 2010

नाजुक काँटे ..

ज़िन्दगी की बिखरती मौजों में कही..
वो किनारा मेरा छूट कर रह गया !!

आती जाती साँसों के धुए में कभी..
 मेरा रहबर कही रूठ कर रह गया  !!

उसने मुझसे कहा टूट कर मत जियो..
बस इसी बात पर टूट कर रह गया !!

मेरे ज़ज्बात समझेगे क्या ये पुतले कभी..
अब यही सोच कर बस मै चुप रह गया  !!

3 comments:

  1. तुम्हारे लिए पता है.........कहने का मन होता है ----- जो दिखता है , वो होता नहीं ..और जो लगता है कि हो रहा है है,...वही
    दरअसल होता नहीं .:)

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  2. चलो ये पुतले कुछ तो समझने लगे..

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  3. जज्ब जो जज्बात ,
    दिल में 'साँझ के सागर' के
    साहिल पर बैठे हुए क्या सुन सकेंगे ??
    अफ़सोस इतना है मगर ,
    चमकना था सूर्य बनकर के जिसे ,
    एक टुकड़ा धूप का बन रह गया .

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