सुलझे मन का क्या दू वर्णन..
सुलझन; व्यापित उलझन है !!
क्या दे पता वो मन जिसमे.. जिसमे उधड़ा हर छोर अगम है !!
जो बिम्ब लगे तुमको कोमल..
वो विधु का रूप विषम है..
श्रापित किरणों से झुलसी..
कोई तममय विरहन है..
क्या शीतलता देती तन को..
जब उसमे लगी अगन है !!
मदिरा ही दे पाए वो तुमको..
जिनका पीयूष धोतम है !!
तुम आकुल हो जिन प्रश्नों के..
ये कुछ उनके उत्तर है !!
मन के कोनो से ही उठता..
कोई कल्पित संगम है !!
कैसे वो करे तृप्त जीवन जो आतृप्त स्वयं है..!!